भारत की प्राचीन कला, वास्तुकला और आध्यात्मिक धरोहर में कई ऐसे प्रतीक हैं जो देखने में रहस्यमय लगते हैं, लेकिन उनके पीछे गहरी सांस्कृतिक और धार्मिक भावनाएं छिपी होती हैं। ऐसा ही एक रहस्यमयी और शक्तिशाली प्रतीक है — Keertimukha (कीर्तिमुख)।
कीर्तिमुख: एक परिचय
कीर्तिमुख, जिसका शाब्दिक अर्थ है “यश का मुख” या “glorious face,” भारतीय मंदिर स्थापत्य और मूर्तिकला का एक प्रमुख प्रतीक है। यह आमतौर पर एक विकराल, सिंह जैसे मुख की आकृति में होता है, जिसकी आंखें उभरी हुई होती हैं और मुँह पूरी तरह खुला होता है। यह मुख्यतः मंदिरों के द्वारों, गर्भगृह की छत, तोरण और शिखर पर उकेरा जाता है।
धार्मिक मान्यता और शक्ति का प्रतीक
कीर्तिमुख को सनातन धर्म में एक रक्षक प्रतीक (guardian motif) के रूप में जाना जाता है। इसे नकारात्मक ऊर्जा, बुरी दृष्टि, और बाहरी संकटों से मंदिर की रक्षा करने वाला देव रूप माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि कीर्तिमुख का विकराल रूप सिर्फ डराने के लिए नहीं है, बल्कि यह बुरी शक्तियों को दूर रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
पौराणिक कथा के अनुसार कीर्तिमुख की उत्पत्ति
शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, एक बार असुर राजा जालंधर ने भगवान शिव को युद्ध की चुनौती दी। उसके गर्व और उद्दंडता से क्रोधित होकर, शिवजी ने अपने तीसरे नेत्र से एक भयंकर राक्षस उत्पन्न किया। यह राक्षस इतना भयानक था कि खुद जालंधर भी डर गया।
शिवजी ने राक्षस को आदेश दिया कि वह स्वयं को खा जाए। आज्ञाकारी राक्षस ने अपने शरीर को खाना शुरू किया और अंत में केवल सिर बचा। इस सिर को देखकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और उसे अमरत्व प्रदान कर दिया, साथ ही आदेश दिया कि यह मुख सदा मंदिरों की रक्षा करेगा। इसी को 'कीर्तिमुख' कहा गया।
भारतीय स्थापत्य में कीर्तिमुख का महत्व
भारत के कई मंदिरों में कीर्तिमुख की मूर्तियाँ और चित्रांकन पाए जाते हैं, विशेषकर:
खजुराहो और कोणार्क जैसे मंदिरों में यह प्रमुख रूप से देखा जा सकता है।
दक्षिण भारत के चोल, होयसाल, और विजयनगर मंदिरों में यह कला व्यापक है।
महाराष्ट्र, ओडिशा, और तमिलनाडु के प्राचीन शैव मंदिरों में कीर्तिमुख की आकृतियाँ मुख्य द्वारों और तोरणों पर अंकित होती हैं।
कीर्तिमुख सिर्फ एक मूर्तिकला नहीं, बल्कि संपूर्ण स्थापत्य दर्शन का प्रतीक बन चुका है, जहाँ वास्तु, धर्म और तांत्रिक परंपराएं एकसाथ मिलती हैं।
कीर्तिमुख के रूप और विशेषताएँ
इसकी आँखें बड़ी और चौड़ी होती हैं, जो जागरूकता का प्रतीक हैं।
विशाल खुला मुँह, जिसमें अक्सर दाँत दिखाई देते हैं – यह उस शक्ति का प्रतीक है जो बुराई को निगल जाती है।
जीभ या जबड़ा नीचे की ओर लटकता हुआ दिखाया जाता है, जो ऊर्जा के नियंत्रण को दर्शाता है।
कभी-कभी इसके सिर के ऊपर सर्प या अग्नि लपटें भी बनी होती हैं, जो तांत्रिक प्रभावों को इंगित करती हैं।
तांत्रिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण
तंत्र शास्त्र में कीर्तिमुख को "निग्रह शक्ति" या 'संयम करने वाली शक्ति' माना गया है। यह ध्यान और साधना की राह में आने वाली आंतरिक बाधाओं को समाप्त करता है—जैसे कि भय, लोभ, मोह, और भ्रम।
तांत्रिक साधक कीर्तिमुख की आराधना को आत्म-संयम और चेतना के द्वार खोलने का माध्यम मानते हैं।
कीर्तिमुख और वास्तुशास्त्र
भारतीय वास्तुशास्त्र में कीर्तिमुख को "वास्तु पुरुष" की रक्षा करने वाला माना जाता है। इसे भवन या देवस्थान के ऊपर रखने से घर या मंदिर पर किसी भी नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव नहीं पड़ता।
विशेषतः मुख्य द्वार के ऊपर लगाए जाने वाले Keertimukha Wall Hanging आजकल न सिर्फ धार्मिक बल्कि सजावटी उद्देश्य से भी प्रचलित हो चुके हैं।
आधुनिक उपयोग और सजावट में महत्व
आज के समय में, कीर्तिमुख को घरों और ऑफिस की सजावट में भी शामिल किया जा रहा है:
Metal Keertimukha Wall Hanging जैसे उत्पाद खासे लोकप्रिय हो रहे हैं।
यह दीवारों, प्रवेश द्वारों, पूजा कक्षों और योग कक्षों में लगाया जाता है।
ये न सिर्फ सुंदर दिखते हैं, बल्कि सकारात्मक ऊर्जा को आमंत्रित करने वाले भी माने जाते हैं।
विशेष रूप से Salvus E-Store द्वारा प्रस्तुत Metal Narsingh Black Face Wall Hanging जो कि कीर्तिमुख कला से प्रेरित है, अपने सजीव भाव, गहराई और पौराणिक शैली के कारण ध्यान खींचता है।
कीर्तिमुख और भारतीय शिल्पकला
भारत में धातु शिल्प (metal craft), खासकर Panchaloha या पीतल-ब्रास मिश्र धातुओं में कीर्तिमुख की मूर्तियाँ बनाई जाती हैं। ये उच्च गुणवत्ता की होती हैं और समय के साथ इनका मूल्य और भी बढ़ता है।
इनकी डिज़ाइनिंग में पारंपरिक शिल्प कौशल के साथ-साथ आधुनिक फिनिशिंग और सजावट का संतुलन देखने को मिलता है।
सांस्कृतिक पुनर्जागरण में कीर्तिमुख की भूमिका
भारत में फिर से पारंपरिक प्रतीकों की ओर झुकाव बढ़ रहा है। युवाओं और कलाकारों में कीर्तिमुख टैटू, ज्वेलरी, पेंटिंग और डिजिटल आर्ट के रूप में इस प्रतीक की लोकप्रियता बढ़ी है। इससे यह स्पष्ट होता है कि कीर्तिमुख आज भी हमारी सांस्कृतिक चेतना का हिस्सा बना हुआ है।
निष्कर्ष: कीर्तिमुख का महत्व आज के युग में
Keertimukha (कीर्तिमुख) सिर्फ एक पौराणिक कथा का हिस्सा नहीं, बल्कि यह आत्मशुद्धि, शक्ति, और चेतना का प्रतीक है। चाहे आप इसे वास्तु-दृष्टि से अपनाएं, आध्यात्मिक साधना के सहायक के रूप में, या अपने घर/ऑफिस की सजावट में, यह आपके जीवन में सकारात्मकता का प्रवेश कराता है।
दिल्ली, मुंबई, भोपाल जैसे शहरों में अब कई लोग कीर्तिमुख वाल हैंगिंग्स, मूर्तियाँ और सजावटी वस्तुओं को अपने घरों में स्थान दे रहे हैं। यह दर्शाता है कि हमारी संस्कृति में यह प्रतीक कितना जीवंत है और समय के साथ इसका महत्व और भी बढ़ता जा रहा है।